Ambedkar ka jeevan sangharsh सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि वह इतिहास है जिसने पूरे भारत के सोचने का तरीका बदल दिया। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन में जिन संघर्षों का सामना किया, वे आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देते हैं।

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन संघर्ष(Dr. Bhimrao Ambedkar’s life struggle): एक प्रेरणादायक गाथा
“मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए।”
— डॉ. भीमराव अंबेडकर
हर साल 14 अप्रैल को भारत एक ऐसे महापुरुष की जयंती मनाता है, जिसने न सिर्फ संविधान लिखा, बल्कि समाज के उस तबके को आवाज़ दी जिसे सदियों से चुप रहने पर मजबूर किया गया था। वह शख्स थे डॉ. भीमराव अंबेडकर(Dr. Bhimrao Ambedkar) — एक महान समाज सुधारक, अर्थशास्त्री, न्यायविद, और स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री। लेकिन इस ऊँचाई तक पहुँचने की राह आसान नहीं थी। यह राह संघर्ष, अपमान, भूख, जात-पात और अन्याय से होकर गुज़री थी। आइए जानते हैं, इस अद्भुत जीवन की वो 12 संघर्षपूर्ण घटनाएं, जो डॉ. अंबेडकर(Dr. Ambedkar) को ‘बाबा साहब’ बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुईं।
1. जन्म से ही भेदभाव का शिकार
भीमराव अंबेडकर(Bhimrao Ambedkar) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक महार (दलित) जाति में हुआ, जिसे समाज में अछूत समझा जाता था। बचपन से ही उन्हें स्कूल में नीचा देखा गया। उन्हें कक्षा में सबसे पीछे बैठाया जाता, और पानी पीने तक की इजाज़त नहीं थी। इससे उनका बाल मन यह सोचने पर मजबूर हो गया कि आख़िर वो दूसरों से अलग क्यों हैं।
2. ट्रेन स्टेशन पर अपमान
एक बार भीम और उनके भाई अपने पिता से मिलने गाँव जा रहे थे। स्टेशन पर कोई भी उन्हें बैलगाड़ी से ले जाने को तैयार नहीं हुआ, क्योंकि वे ‘अछूत’ थे। आख़िरकार एक गाड़ीवाले ने डबल किराया लेकर उन्हें बिठाया, लेकिन डर के कारण वह खुद पैदल चलता रहा। इस घटना ने उनके अंदर समाज के दोहरेपन के प्रति आक्रोश भर दिया।
3. माँ की मृत्यु और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ
बचपन में ही उनकी माँ का देहांत हो गया। पिता रामजी अकेले 8 बच्चों की परवरिश कर रहे थे। आर्थिक तंगी के बीच भी उन्होंने बच्चों की पढ़ाई को प्राथमिकता दी। भीमराव की बड़ी बहन ने माँ की भूमिका निभाई।
4. स्कूल में जातीय भेदभाव
जब उन्हें ब्लैकबोर्ड पर हल करने के लिए बुलाया जाता, तो बाकी बच्चे उठकर खड़े हो जाते कि कहीं उनका टिफिन ‘पॉल्यूट’ न हो जाए। संस्कृत पढ़ने की इच्छा जताने पर उन्हें कहा गया – “ये विषय तुम्हारे लिए नहीं है।” मजबूर होकर उन्होंने पाली पढ़ी, लेकिन बाद में खुद से संस्कृत भी सीखी।
5. मैट्रिक परीक्षा और शादी
17 वर्ष की उम्र में मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले वह अपनी जाति के पहले छात्र बने। इसी साल उनकी शादी रमाबाई से कर दी गई। यह एक बड़ा कदम था, लेकिन उनका ध्यान पढ़ाई पर ही रहा।
6. उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप
बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें स्कॉलरशिप देकर न्यूयॉर्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने भेजा। वहाँ से उन्होंने अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में एम.ए., फिर पीएचडी की।
7. लंदन में शिक्षा, भारत में अपमान
पीएचडी के बाद वे लंदन गए और वहाँ से बार-एट-लॉ बने। लेकिन भारत लौटकर जब उन्होंने नौकरी शुरू की, तो फिर वही पुराना जातीय अपमान सामने आया। ऑफिस में कोई उन्हें पानी तक नहीं देता था। होटल से उन्हें जाति जानने के बाद निकाल दिया गया।
8. बिज़नेस में जाति आड़े आई
मुंबई लौटकर उन्होंने एक छोटा बिज़नेस शुरू किया जिसमें वो निवेश पर सलाह देते थे, लेकिन जाति का पता चलते ही ग्राहक दूर भागने लगे। समाज में प्रतिभा से ज्यादा जाति की कीमत थी।
9. ‘मूकनायक’ की शुरुआत
1920 में उन्होंने ‘मूकनायक’ नामक अखबार शुरू किया जो दलितों की आवाज़ बना। उन्होंने कहा – “अगर तुम्हारे पास बोलने की आज़ादी नहीं, तो पढ़ाई से कुछ नहीं होगा।”
10. महाड़ सत्याग्रह और जल अधिकार आंदोलन
1927 में डॉ. अंबेडकर (Dr. Ambedkar) ने महाड़ सत्याग्रह किया जिसमें दलितों ने पहली बार सार्वजनिक तालाब से पानी पीया। इसने भारतीय समाज को झकझोर कर रख दिया। उन्होंने छूआछूत के खिलाफ जमीनी आंदोलन शुरू किया।
11. संविधान निर्माण का नेतृत्व
स्वतंत्र भारत में उन्हें संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने एक ऐसा संविधान तैयार किया जो सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है — चाहे जाति, धर्म, लिंग या भाषा कोई भी हो।
12. बौद्ध धर्म ग्रहण और अंतिम क्रांति
1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया क्योंकि उन्हें लगा कि हिंदू धर्म में सुधार संभव नहीं है। लाखों अनुयायियों ने उनके साथ धर्म परिवर्तन किया। यह सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति थी।
निष्कर्ष: संघर्ष से समर्पण की कहानी
डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr.Bhimrao Ambedkar) का जीवन सिर्फ संघर्षों की दास्तां नहीं, बल्कि उनके साहस, समर्पण और दूरदर्शिता की मिसाल है। उन्होंने हर अपमान को ताकत में बदला और समाज को एक नई सोच दी। वो अकेले नहीं लड़े, बल्कि पूरे समुदाय को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
उनकी जयंती पर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।
“शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो” – यही उनका संदेश था और यही आज भी हमारी राह है।
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