Sardar Vallabhbhai Patel 5 प्रमुख योगदान जो भारत को बदला

सरदार वल्लभभाई पटेल: भारत के लौह पुरुष की प्रेरणादायक गाथा (Sardar Vallabhbhai Patel: The Inspiring Story of the Iron Man of India)

प्रस्तावना

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महान नेताओं ने अपनी भूमिका निभाई, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने न केवल स्वतंत्रता दिलाने में योगदान दिया, बल्कि स्वतंत्रता के बाद भारत को एकीकृत करने में भी अहम भूमिका निभाई। सरदार वल्लभभाई पटेल(Sardar Vallabhbhai Patel) ऐसे ही एक महापुरुष थे, जिन्हें ‘लौह पुरुष’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 565 से अधिक रियासतों को एकजुट कर भारत को संगठित राष्ट्र बनाया। उनके दृढ़ संकल्प, प्रशासनिक क्षमता और नेतृत्व कौशल की वजह से आज भी उन्हें भारत के इतिहास में एक महान नायक के रूप में याद किया जाता है।


Sardar Vallabhbhai Patel
                         Sardar Vallabhbhai Patel

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

सरदार वल्लभभाई पटेल(Sardar Vallabhbhai Patel) का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड गांव में हुआ था। उनके पिता झवेरभाई पटेल झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में थे और उनकी माता लाडबाई एक धर्मपरायण महिला थीं। बचपन से ही वल्लभभाई ने आत्मनिर्भरता और अनुशासन को अपनाया।

प्रारंभिक शिक्षा

वल्लभभाई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गुजरात के करमसद, पेटलाद और नाडियाड में पूरी की। 22 वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। पढ़ाई के प्रति उनका समर्पण गहरा था, लेकिन उनके परिवार को प्रारंभ में उनकी क्षमताओं पर विश्वास नहीं था।

बैरिस्टर बनने की यात्रा

वल्लभभाई पटेल(Vallabhbhai Patel) ने वकालत को करियर के रूप में चुना और इसके लिए इंग्लैंड जाकर लॉ की पढ़ाई करने का निश्चय किया। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने अपनी मेहनत से लंदन में दो वर्षों में ही अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और एक सफल बैरिस्टर के रूप में भारत लौटे।


व्यक्तिगत जीवन और प्रारंभिक करियर

भारत लौटने के बाद, वल्लभभाई पटेल(Vallabhbhai Patel) ने गोधरा में वकालत शुरू की। उनकी शादी झवेरबाई से हुई, और उनके दो बच्चे – बेटा दाह्याभाई और बेटी मणीबेन – हुए। उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया और एक अनुशासित जीवन जिया।


स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

महात्मा गांधी से प्रेरणा

1917 में, वल्लभभाई पटेल(Vallabhbhai Patel) की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निर्णय लिया और अहमदाबाद के नगर निगम के चुनाव में विजय प्राप्त की।

खेड़ा सत्याग्रह

1918 में, गुजरात के खेड़ा जिले में पड़े भयंकर सूखे के कारण किसानों की स्थिति दयनीय हो गई। ब्रिटिश सरकार ने कर माफी से इनकार कर दिया, जिसके कारण वल्लभभाई पटेल ने सत्याग्रह का नेतृत्व किया। उनकी दृढ़ता और नेतृत्व क्षमता के कारण ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और कर माफी करनी पड़ी।

बारदोली सत्याग्रह

1928 में, ब्रिटिश सरकार ने बारदोली में कर बढ़ा दिए, जिससे किसानों में असंतोष फैल गया। वल्लभभाई पटेल ने उनके समर्थन में आंदोलन चलाया और सफल हुए। इस आंदोलन की सफलता के बाद उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी गई।

भारत छोड़ो आंदोलन और जेल यात्रा

1942 में, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वल्लभभाई पटेल(Vallabhbhai Patel) को गिरफ्तार कर लिया गया और कई महीनों तक जेल में रखा गया। लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति बनी रही, और उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी रखा।


आजादी के बाद भारत के एकीकरण में योगदान

565 रियासतों का भारत में विलय

1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली, लेकिन देश 565 से अधिक रियासतों में विभाजित था। वल्लभभाई पटेल, जो स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने, ने इन रियासतों को भारत में विलय करने का कठिन कार्य अपने कंधों पर लिया। उन्होंने अपनी सूझबूझ, कूटनीति और शक्ति के बल पर इन रियासतों को भारत का अभिन्न हिस्सा बना लिया।

हैदराबाद और जूनागढ़ का विलय

हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी रियासतों का भारत में विलय करना आसान नहीं था, लेकिन पटेल की दृढ़ इच्छाशक्ति और रणनीति के चलते यह संभव हुआ। इस कार्य को पूरा करने के लिए उन्होंने सैन्य और कूटनीतिक दोनों ही तरीकों का उपयोग किया।

प्रशासनिक सुधार

वल्लभभाई पटेल (Vallabhbhai Patel) ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) जैसी संस्थाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारत की आंतरिक सुरक्षा और प्रशासनिक दक्षता को मजबूत किया।


निधन और विरासत

सरदार पटेल का निधन

15 दिसंबर 1950 को मुंबई के बिरला हाउस में हृदयगति रुक जाने से सरदार वल्लभभाई पटेल(Sardar Vallabhbhai Patel) का निधन हो गया। उनके योगदान को भारत कभी नहीं भुला सकता।

राष्ट्रीय एकता दिवस

2014 में भारत सरकार ने घोषणा की कि सरदार पटेल के जन्मदिन, 31 अक्टूबर, को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। यह उनके योगदान को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है।

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

2018 में, उनकी स्मृति में गुजरात के केवड़िया में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का निर्माण किया गया, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर है। यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है और भारत की एकता का प्रतीक बनी हुई है।

सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायक थे, बल्कि वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने आजाद भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सोच, नेतृत्व और योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी जीवन गाथा आज भी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने देश की एकता और अखंडता के लिए कार्य करें।

“एक राष्ट्र, एक भारत” की परिकल्पना को साकार करने वाले लौह पुरुष को शत-शत नमन।

 

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